हर बात पे ‘सब बढ़िया हैं’ कहने वाला मौजी(वरुण धवन) जिसके पीछे वो अपने सारे दुःख, सपनो का टूटना, गरीबी, समाज की दरिंदगी और अपनी बेबसी को ढाप देता हैं, एक हसमुख इंसान हैं जिससे हम रोज़ मिलते हैं पर कभी उसकी ज़िन्दगी में नहीं झाकते| निर्देशक- लेखक शरत कटारिया बहुत ही सलीके और बिना किसी जल्दी बाज़ी के हमको उसकेऔर ममता(अनुष्का शर्मा) के जीवन से रूबरू कराते हैं |
ममता और मौजी के विवाह को एक अच्छा खासा अरसा हो चूका हैं पर अभी भी वो एक दूसरे से अनजान से ही हैं, जहाँ एक तरफ मौजी जो अपने हुनर से अनजान, समाज की मानसिक गुलामी में फसा हुआ हैं की चलो उसे किसी ने काम तो दिया भले वो कैसा भी बर्ताव करता हो, घर चलना हैं ये एक ऐसी बेड़ी हैं जो उसकी सोच को टस से मस भी नहीं होने देती |
वही दूसरी तरफ ममता का दिन-चक्र सुबह उठ के पानी भरने, घर का खाना बनाने, साफ़-सफाई, और रिटायर्ड हो चुके सास-ससुर की सेवा मैं फसा हुआ हैं| बहु से जो भारत का समाज उम्मीद करता हैं उसने ममता को इंसान से बहुत नीचे मशीन की श्रेड़ी में ला धकेला हैं| सपनो का मर जाना उसके भोले चेहरे को मुर्दा शांति से भर चूका हैं पर इस सबने भी ममता की अपने पति के लिए इज़्ज़त को कड़वा नहीं किया, पर जब वो ये देखती हैं की मौजी अपने मालिकों का कुत्ता बनकर मनोरंजन कर रहा हैं, ममता मुड़ती हैं और साथ में फिल्म की कहानी भी आत्मा-निर्भरता की ओर |
मौजी को वरुण धवन अपने ईमानदार अभिनय से और ममता को अनुष्का शर्मा अपनी सूक्षम डिटेलिंग से उंदा बनाते हैं, रघुबीर यादव और यामिनी दास अपने सशक्त अभिनय से सबका दिल जीतते हैं, कैमरे के पीछे से अनिल मेहता ने कुछ ऐसे पल कैद किये ही की वो द्रश्य आपके साथ सिनेमा हाल के बाहर तक आएंगे| अनु मलिक का संगीत और एंड्रिया गुएर्रा का बैकग्राउंड स्कोर कहानी और किरदारों की भावनाओ को बहुत प्यार और बिना किसी शोर शराबे के उजागर करती हैं|
फिल्म में पांच गीत हैं जो वरुण गोवर की कलम से निकले हैं, सभी गाने कहानी को आगे ले जाने में और किरदारों की मनोस्थति का ब्यान नए शब्दों से करते हैं |
सुई धागा के 122 मिनट में सब कुछ बढ़िया हैं
रेटिंग 3.5 / 5